दोष

दोष,Blame, Meri Soch

चलो मान लिया कि तुझे बिछड़ना भी ज़रूर था
मगर यह तेरा शौक था और मैं मजबूर था
अब दोष देते भी तो किसको देते तू ही बता
जब तूने ही तोड़ा और तू ही मेरा गुरूर था

कोई हीरे मोती की चाह नहीं थी इस जीवन में
हां तुझे पाने का मसला तो जरूर था
छोड़ दी थी सारी दुनिया तेरे लिए मैने
तेरे प्यार में मैं तो मगरुर था
अब….

मुझे लगता था अंधेरों से डर
और तू तो रौशन मीनार था
मेरे मर्ज की नहीं थी दबा कोई
मुझे तेरे इश्क का बुखार था
तू लुकमान होकर भी ना करेगा इलाज मेरा
इतना शक तो मुझे भी जरूर था
अब….

गिला है तुझसे और हां
मुझे तुझसे शिकायत भी है
मुकम्मल हुई तो क्या रही
मोहब्बत ऐसी रिवायत भी है
फिर भी मैं चलता रहा उसी पथ पर
जाने कैसा इश्क का सरूर था
अब…

किसी ने कहा भूल जा उसे
तो किसी ने ताबीज़ दे डाला
किसी ने सिखाई योग क्रिया मुझको
तो किसी ने मूल मंत्र का बीज दे डाला
उन सबका भी करता रहा शुक्रिया हरदम क्यूंकि
उनका मकसद भी तो नेक जरूर था
अब…

भूला नहीं हूं मैं तुझको मगर
तेरा इंतजार भी नहीं करता
तू ही पहला था और आखिरी है
और किसी से मैं प्यार नहीं करता
कैसे कर दूं शर्मसार उसको तू बता
हमारी मोहब्बत का किस्सा जो मशहूर था
अब…..

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