
मैं पागल तो नहीं था लेकिन फिर भी मुझे बनाया गया
जब जब भी की कोशिश हँसने की मुझे रुलाया गया
मैं फिर भी सहता रहा उनके सारे सितम बिना शिकवे के
मैं तो आशिक था मोहब्बत के नाम पर मुझे आजमाया गया
हम सीना तानकर फिरते रहे पर पीठ पर खंजर चलाया गया
हमने जितना चाहा उनको ऊपर उठना उतना हमे नीचा दिखाया गया
जानकर भी बनते रहे अनजान हम और पीते रहे घूंट सब्र के
मुस्कुराने की दे दी सज़ा हमें और फिर अंगारों पर बिठाया गया
जब…..
मैं तो था नादान परिंदा शिकारी के जाल से बेखबर
मैं चाहता रहा उसको और वो मुझे मिटाने को बेसब्र
बहुत सोच समझ कर आखिर मुझे फसाया गया
बचा नहीं वजूद भी मेरा कुछ इस कदर मुझे मिटाया गया
जब…..
हुए फरेब भी हजारों और और साज़िशों का हिसाब नहीं
फिर भी हर बार झूठ को सच करके मुझे बताया गया
टोका था उनकी गलती पर उनको कभी उसका सिला ये मिला
गलत तो थे खुद वही और मुझको ही गलत ठहराया गया
जब…..