
मोहब्बत का किस्सा
अपनी मोहब्बत का किस्सा कुछ इस कदर मशहूर है
मैं उससे दूर हूं और वो मुझसे दूर है
दूरियों ने कुछ इस कदर निखारा है हमको
हमारी तन्हाई ने अक्सर पुचकारा है हमको
तन्हाई तो यूं मोहब्बत का दस्तूर है
मैं उससे दूर हूं और वो मुझसे दूर है
खामोश सी है मोहब्बत और तन्हाई का शोर है
एक दूजे के ख्यालों से बंधी हमारी सांसों की डोर है
दुनिया कहे कुछ भी मगर हमको तो खुद पर गुरूर है
मैं उससे दूर हूं और वो मुझसे दूर है
ज़माने के सितम हों या फिर मोहब्बत का सिला कह लो
कर लो बगावत या फिर चाहे चुपचाप सह लो
हर हाल होना बदनाम तो जरूर है
मैं उससे दूर हूं और वो मुझसे दूर है
जमाने की तो छोड़ो बात खुद पे भरोसा टूटने लगा
जब मेरा हाथ उसके हाथ से छूटने लगा
टूट कर बिखर रहे हैं हम यहाँ और
ज़माना तो खुद मेन ही मगरूर है
मैं उससे डोर हूँ और वो मुझसे दूर है